देश की आज़ादी में उलमा-ए-अहले सुन्नत ने निभाई अहम भूमिका
-तुर्कमानपुर मेें ‘जश्न-ए-यौमे जम्हूरिया जलसा’
गोरखपुर। गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर बुधवार को तुर्कमानपुर मेें तंजीम कारवाने अहले सुन्नत व मकतब इस्लामियात के संयुक्त तत्वावधान में ‘जश्न-ए-यौमे जम्हूरिया जलसा’ हुआ। अध्यक्षता करते हुए मुफ़्ती-ए-शहर अख्तर हुसैन मन्नानी ने कहा कि अंग्रेज हिंदुस्तान आए और मक्कारी से यहां के हुक्मरां बन गए। सबसे पहले अंग्रेजों के खिलाफ अल्लामा फज्ले हक खैराबादी ने दिल्ली की जामा मस्जिद से फतवा दिया। पूरे मुल्क के हिंदू-मुसलमान तन, मन और धन से अंग्रेजों के खिलाफ सरफरोशी का जज्बा लिए मैदान में कूद पड़े। लाल किले पर सात हजार सुन्नी उलमा किराम को अंग्रेजो ने सरे आम फांसी दी। उलमा किराम ने अपने खून से हिंदुस्तान को सींचा और लोगो को गुलामी की जंजीरों से आजाद होने का जज्बा पैदा किया। भारतीय संविधान अनमोल है इसकी कद्र व हिफाजत कीजिए।
मुख्य वक्ता मौलाना जहांगीर अहमद अजीजी ने कहा कि अल्लामा फज्ले हक खैराबादी, सैयद किफायत अली काफी मुरादाबादी, बहादुर शाह जफर, हजरत शाह वलीउल्लाह, हजरत शाह अब्दुल अजीज, टीपू सुल्तान, नवाब सिराजुद्दौला, मुफ्ती किफायत उल्ला कैफी, मुफ्ती इनायत अहमद, हाफिज रहमत खां, मौलाना रजा अली खां, बेगम हजरत महल, मौलाना अब्दुल हक खैराबादी, इमाम अहमद रजा खां, मौलाना मो. अली जौहर, अहमदुल्लाह शाह मद्रासी, मुफ्ती सदरूद्दीन देहलवी, शौकत अली, बख्त खां, मो. हसन जैसे हजारों मुसलमानों ने मुल्क के लिए अंग्रेजों से लड़ाई लड़ी, यह सभी वतन से बेपनाह मुहब्बत रखते थे। मौलाना हिदायत रसूल जो आला हजरत इमाम अहमद रज़ा खां के शागिर्दे खास थे। इन्हें भी अंग्रेजों ने फांसी की सजा दी।
कार्यक्रम संयोजक नायब काजी मुफ़्ती मो. अज़हर शम्सी ने कहा कि हजरत सुल्तान टीपू हिंदुस्तान के पहले मुजाहिद हैं जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ जिहाद किया और सबसे पहले तसव्वुरे आज़ादी का जेहन दिया। जंग-ए-आजादी में उलमा-ए-अहले सुन्नत ने अहम भूमिका निभाई। आला हजरत के दादा अल्लामा रजा अली खां के सर पर अंग्रेजों ने 600 रुपये का ईनाम रखा था। जुर्म क्या था जब 1857 मे गदर का मामला आया तो ये भी उसमें शामिल थे। भारतीय संविधान हमारी आन, बान व शान है इसकी हिफ़ाजत हम सबकी जिम्मेदारी है।
विशिष्ट वक्ता कारी मो. अनस रज़वी ने कहा कि जंग-ए-आजादी में हजरत अल्लामा फज्ले हक खैराबादी का नाम सबसे पहले आता है उसके बाद हजरत सैयद किफायत अली काफी मुरादाबादी हैं ये अपने वक्त के बहुत बडे़ जंग-ए-आजादी के मुजाहिद थे। मुफ्ती सदरूद्दीन देहलवी जंग-ए-आजादी के वह उलमा हैं जिन्होंने लोगों मे आजादी का जज्बा पैदा किया और एक नई रूह फूंकी।
विशिष्ट वक्ता मुफ़्ती मेराज अहमद कादरी ने कहा कि हजरत अल्लामा फज्ले हक खैराबादी ने अंग्रेजो के खिलाफ जिहाद का फतवा दिया और कहा अंग्रेजों से जिहाद करना जायज है। जब आपने फतवा दिया तो पूरे हिंदुस्तान मे कोहराम मच गया। फतवा देने के कई महीने बाद अंग्रेजों ने आपको गिरफ्तार किया। आप पर मुकदमा चला। चुनांचे आपको काला पानी अंडमान भेज दिया गया। सन् 1861 मे आपका वहीं इंतक़ाल हुआ और वहीं मजार शरीफ है। ऐसे ही बख्त खां जो बहादुर शाह जफर के सेना के सालार-ए-आजम थे बहुत बड़े सिपह सालार थे और बहुत बड़े जंग-ए-आजादी के हीरो थे।
आगाज क़ुरआन-ए-पाक की तिलावत से हुआ। नात, मनकबत व देश की आजादी का तराना पढ़ा गया। अपील कि गई सभी जोश-ओ-खरोश के साथ यौमे-ए-जम्हूरिया का जश्न मनाएं। अंत में फातिहा ख़्वानी हुई। सलातो सलाम पढ़ा गया। शीरीनी बांटी गई। जलसे में हाफिज रहमत अली, हाफिज महमूद रज़ा, हाफिज आरिफ, अफरोज क़ादरी, कासिद रज़ा, हाफिज एमादुद्दीन सहित तमाम लोग मौजूद रहे।
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