परमात्मा सर्वत्र ,सर्वदा व समान रूप से है विद्यमान
चिन्मयानंद बापू जी
गोलाबाजार गोरखपुर 14फरवरी।
जो पूर्व जन्म में पुण्य किया हो उसे ही भगवान की कथा प्राप्त होती है। भगवान की कथा से ही सदगुणों का प्रादुर्भाव होता है। राम कथा रूपी गंगा में हम सभी लोग स्न्नान कर रहे है। इस जनपद में मेरा पहला आना हुआ है। आप लोगो का राम कथा के प्रति प्रेम देखकर मैं पूर्ण रूप से अचंभित हूँ।
उक्त बातें राम कथा के पांचवे दिन अंतरराष्ट्रीय कथावाचक चिन्म्यानंद बापू ने श्रद्धालु भक्त जनों को राम कथा का रसापान करते हुए कही।
आगे उन्होंने कहा कि तुलसी दास जी ने अपने छंद के माध्यम से जो रस समाज को दिया उस रस को एक बार पी लेने के बाद जीव प्रभु का ही बन जाता है।
परमात्मा सर्वत्र ब्याप्त है।वह जन्म नहीलेता है।वह प्राकट्य होता है। जन्म मरण जीव का होता है। परमात्मा तो सर्वत्र सर्वदा व समान रूप से है। महिमा उस स्थान की बढ़ जाती है जहां ठाकुर जी प्रकट होते है। अयोध्या काशी बृंदाबन में ही नही,इस भवनियापुर की पुण्य भूमि भी है।
परमात्मा सर्वत्र है।लेकिन अप्रकट है। परमात्मा से जीव के अंदर बिद्यमान है।
आनंद का सागर जीव के अंदर ही है। लेकिन मनुष्य को पता नही है। कृष्ण ,कंस और पूतना के भीतर थे।कृष्ण ने कंस और पूतना को मारा नही है। मारने वाले कृष्ण को देवकी ने प्रकट किया।
आगे बापू ने कहा कि प्रेम से ही परमात्मा प्रकट होते है। प्रेम से ही सन्तो का आगमन भी होता है। तुलसी दास ने मानस में लिखा है कि रामहि केवल प्रेम पियारा।
दुनिया स्वार्थी है। जब तक स्वार्थ है तब तक प्रेम का दिखावा चलता है। प्रेम जैसा पवित्र तत्व परमात्मा को समर्पित करो।
. परमात्मा का नाम रूप देने से बदलाव नहीं आता, दशरथ के पुत्र के रूप मे जन्म लेने से उनका नाम राम पड़ा. जो विद्वान होते है वह विनम्र होते हैं. जिनके अंदर विवेक है वह शांत होता है. कथा हमारे अंदर बैठे, हम कथा में बैठे यह नहीं होना चाहिए. मन चंचल है भटकता है लेकिन भगवान से प्रेम होने पर मन भगवान के चरणों मे रहेगा. राम कथा सुन कर संशय रूपी पक्षी हमेशा उड़ जाता है. रामकथा कामधेनु गाय की तरह हमें देती है. श्रोता पहाड़ रूपी अंहकार, वर्ण, पद, धन को छोड़कर ही कथा में आये. अंहकार से कथा का लाभ नहीं मिलता. जिस प्रकार पहाड़ पर हो रही वर्षा का कोई लाभ नहीं है. परमात्मा हर रोज मिलते हैं बस हमारी नजर पहचान नहीं पाती.है।
कथा के दौरान जगदगुरू पीठाधीश्वर राजेंद्र दास जी, जगदगुरू रामानंद दास, महंत राघव दास जी, धर्माचार्य कमला दास, दसरथी दास, रामप्यारे दास, अवधेश दास जी, रंगमहल पीठाधीश्वर रामशरण दास, रजनीश पाण्डेय, ब्रम्हानन्द शास्त्री सहित अन्य लोग उपस्थित रहे।
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