मनोज मिश्रा डाबरा समाचार गोरखपुर।। जनपद गोरखपुर के बड़हलगंज ब्लॉक के पोहिला ग्राम सभा के निवासी डॉक्टर- सत्य प्रकाश तिवारी जो विदेशों में जाकर के भी अपने भारत देश एवं उत्तर प्रदेश एवं गोरखपुर जिला और अपने चिल्लुपार क्षेत्र और अपने गांव का नाम रोशन कर रहे हैं जो हर जगह पहुंच करके लोगों के बीच में रह करके यह मानव सेवा में अपना जीवन यापन कर रहे हैं जो डाॅ- सत्य प्रकाश तिवारी का कहना है कि हम क्या लेकर के आए थे हम क्या लेकर के जाएंगे सब कुछ यही छोड़ जाएंगे हमें मानव तन मिला है एक दूसरे का सुख-दुख और सेवा करने का,, इसी नेक विचारों के कारण आज डॉक्टर- सत्य प्रकाश तिवारी एक चर्चा का विषय बने हुए हैं। विदेश में रहते हुए भी अपने गोरखपुर जिला और अपने चिल्लूपार में, जिससे लोग इनके नाम सुनकर के अति प्रसन्न होते हैं कि यह पोहिला गांव का नाम रोशन कर रहे हैं।
श्राद्ध, हिन्दू धर्म में एक महत्वपूर्ण धार्मिक आचरण है जिसमें अपने पूर्वजों या दिवंगत आत्माओं का सम्मान और श्रद्धांजलि देने का अद्वितीय माहत्व होता है। इसे हिन्दू संस्कृति में कई कारणों के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है:
पूर्वज संबंध: श्राद्ध का मूल मानना है कि हमारे पूर्वज अंतर्लोक में जीवित रहते हैं, और उनकी आशीर्वाद जीवंत वंश के कल्याण और समृद्धि के लिए महत्वपूर्ण हैं। श्राद्ध का पालन करके हिन्दू अपने पूर्वजों के साथ मजबूत संबंध बनाने का प्रयास करते हैं।
आध्यात्मिक कर्तव्य: हिन्दू धर्म में, अपने पूर्वजों को याद रखना और उनको श्रद्धांजलि देना एक नैतिक और आध्यात्मिक कर्तव्य (धर्म) माना जाता है। इन आचरणों को अनदेखा करने से परिवार को नकारात्मक परिणाम और दुख आने की आशंका होती है।
कर्मिक संतुलन: हिन्दू धर्म में कर्म की सिद्धांत है, जहां इस जीवन में किए गए कर्म भविष्यकाल में प्रभाव डालते हैं। श्राद्ध का पालन करके व्यक्तियां अपने परिवारिक कर्तव्यों को अनदेखे रहने के कारण उत्पन्न होने वाले किसी नकारात्मक कर्मिक परिणामों को कम करने की आशा करती हैं।
परिवार में समान्यता: श्राद्ध के अचरण सामाजिक और पारिवारिक समान्यता को बनाए रखने में मदद करते हैं, क्योंकि इसमें परिवार के सदस्य एक साथ आकर्षित होते हैं और मूल्यों और परंपराओं का साझा करने को प्रोत्साहित करते हैं।
कृतज्ञता व्यक्त करना: श्राद्ध अपने पूर्वजों के योगदान के लिए कृतज्ञता और श्रद्धांजलि व्यक्त करने का एक तरीका है। इसमें उनके भूमिका को स्वीकार करने का भी एक रूप है।दिवंगत आत्माओं की मदद: हिन्दू धर्म में विश्वास है कि श्राद्ध के दौरान भोजन, प्रार्थना, और अन्य आहुतियाँ देकर वे दिवंगत आत्माओं को सांत्वना प्रदान करते हैं। माना जाता है कि यह आहुतियाँ आत्माओं को उनके परलोकी यात्रा में आगे बढ़ने में मदद करती हैं।
सांस्कृतिक पहचान: श्राद्ध हिन्दू संस्कृति और पहचान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह सांस्कृतिक और धार्मिक जड़ों को मजबूत करता है जो समुदाय को एक साथ बाँधते हैं।
जीवन और मृत्यु का चक्र: हिन्दू धर्म सिखाता है कि जीवन और मृत्यु एक सतत चक्र का हिस्सा हैं। श्राद्ध करके, व्यक्तियाँ इस चक्र में भाग लेती हैं और जीवन की अनित्यता को स्वीकार करती हैं।
आशीर्वाद मांगना: माना जाता है कि अपने पूर्वजों को सम्मान करके व्यक्तियाँ अपने जीवन में सुरक्षा, मार्गदर्शन, और समृद्धि के लिए उनका आशीर्वाद मांग सकती हैं।प्रथा और परंपराएँ: श्राद्ध अनुष्ठान परंपरा और प्रतीकता में धनी हैं, जो हिन्दू धर्म की सांस्कृतिक धरोहर को बढ़ावा देते हैं। ये पीढ़ियों से पीढ़ियों तक पारंपरिक रूप से पास की जाती हैं और गुज़िस्त से संबंध की एक भावना को बनाए रखने में मदद करती हैं।
श्राद्ध आमतौर पर विशिष्ट समयों पर किया जाता है, जैसे कि हिन्दू चंद्रमास कैलेंडर में पितृ पक्ष अवधि, जो अपने पूर्वजों को श्रद्धांजलि देने के लिए समर्पित होती है। श्राद्ध में शामिल अनुष्ठानों का क्षेत्रीय और विभिन्न हिन्दू समुदायों के बीच भिन्न हो सकता है, लेकिन मूल उद्देश्य समय ही रहता है: अपने पूर्वजों का सम्मान करना और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के साथ परिवारी बंधन बनाए रखना।
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