माह-ए-रमज़ान का 25वां रोजा मुकम्मल, ईद की तैयारी शुरु
गोरखपुर। माह-ए-रमज़ान का 25वां रोजा अल्लाह की इबादत में बीता। तेज धूप में मुसलमानों के सब्र का इम्तिहान हो रहा है। तरावीह की नमाज जारी है। नमाज व कुरआन-ए-पाक की तिलावत मस्जिद व घरों में हो रही है। शहर की विभिन्न मस्जिदों में एतिकाफ पर बैठे रोजेदार नमाज, रोजा व तिलावत के जरिए अल्लाह को राजी करने में जुटे हुए हैं। खूब दुआएं मांगी जा रही है। ईद के लिए सेवई, मेवा, कुर्ता-पायजामा, इत्र, टोपी, शर्ट-पैंट, सलवार सूट, बर्तन, ज्वैलरी, जूता चप्पल रेती चौक, शाह मारूफ, घंटाघर, गोलघर, गोरखनाथ, जाफ़रा बाज़ार, गीता प्रेस, उर्दू बाजार आदि जगहों से खरीदा जा रहा है। अलविदा व ईद को लेकर छोटे से लेकर बड़ों में उत्साह है।
मरकजी मदीना जामा मस्जिद रेती चौक के इमाम मुफ्ती मेराज अहमद कादरी ने बताया कि पैगंबरे इस्लाम हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया है कि यदि समाज का एक तबका अपनी जायज जरूरतों को पूरा नहीं कर पाता है तो आर्थिक रूप से सम्पन्न लोगों की यह जिम्मेदारी है कि वे उसे खुशहाल ज़िन्दगी बसर करने में मदद करें। यही अल्लाह के नेक बंदों का काम है। इस तरह ईद अमीर-गरीब के बीच की खाई को पाटने में पुल का काम करती है।
हुसैनी जामा मस्जिद बड़गो के इमाम मौलाना मो. उस्मान बरकाती ने बताया कि अल्लाह ने कुरआन में रोजे का हुक्म दिया और पूरे दिन रोजेदार कुरआन में बताए रास्ते पर चलने को लालायित रहता है। दिनभर रोजा रखकर रोजेदार को जो खुशी होती है, उससे बड़ी खुशी वह आखिरत में अल्लाह से रोजे के बदले अब्दी ईनाम को पाकर महसूस करेगा। उन्होंने कहा कि मुसलमान सदका-ए-फित्र व जकात जल्द अदा कर दें ताकि जरूरतमंद अपनी जरूरतें पूरी कर लें। जकात दीन-ए-इस्लाम का अहम रुकन है। यह गरीबों, मिस्कीनों, यतीमों का हक है। लिहाजा जल्द उन तक रकम पहुंच जाएगी तो उनकी जरूरतें पूरी हो जाएगी।
मुकीम शाह जामा मस्जिद बुलाकीपुर के इमाम मौलाना फिरोज आलम निज़ामी ने कहा कि रमज़ान का तीसरा अशरा जहन्नम से निजात का है। इस अशरे में अल्लाह की इबादत करने वालों को जहन्नम की आग से निजात मिलती है। रमज़ान हमें बताता है कि हर किसी के साथ मिलकर रहें, बुराइयों से बचें। सिर्फ भूखे न रहें, हर नफ्स का रोजा रखें। मतलब एक इंसान को इंसानियत के राह पर ले जाने वाला होता है मुकद्दस रमज़ान।
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मालिके निसाब पर सदका-ए-फित्र वाजिब है : उलमा किराम
गोरखपुर। तंजीम उलमा-ए-अहले सुन्नत द्वारा जारी रमज़ान हेल्प लाइन नंबरों पर सोमवार को सवाल-जवाब का सिलसिला जारी रहा। लोगों ने नमाज़, रोज़ा, जकात, फित्रा, एतिकाफ, शबे आदि आदि के बारे में सवाल किए।
1. सवाल : जो शख़्स किसी वजह से रोज़ा न रख सका वो भी सदका-ए-फित्र देगा? (तौसीफ, रहमतनगर)
जवाब : जी हां, कि सदका-ए-फित्र वाजिब होने के लिए रोज़ा रखना ज़रूरी नहीं। (मुफ्ती मो. अजहर)
2. सवाल : तरावीह की रकअतों में कमी करना मसलन दस या आठ रकअत पढ़ना कैसा? (नवेद आलम, खोखर टोला)
जवाब : तरावीह की नमाज़ बीस रकअत है। नमाजे तरावीह की रकअतों में कमी करना नाजायज ओ हराम और शरीअत पर ज्यादती है जो शख़्स ऐसा करे सख्त गुनाहगार और अज़ाबे दोजख का सज़ावार है। (मुफ्ती अख़्तर हुसैन)
3. सवाल : तरावीह की नमाज़ छोड़ना कैसा? (गुलाम मोहम्मद, इलाहीबाग)
जवाब: नमाज़े तरावीह का पढ़ना हर आकिल व बालिग मर्द और औरत पर सुन्नते मुअक्कदा है बिला वजह इसे छोड़ना जायज़ नहीं। (मुफ्ती मेराज अहमद)
4. सवाल : क्या ग़रीबों को माले जकात बता कर देना लाज़िम है? (मो. नाजिम, छोटे क़ाज़ीपुर)
जवाब: नहीं। यह लाज़िम नहीं की ग़रीब को जकात कह कर ही दिया जाए बल्कि किसी भी मुनासिब नाम से जकात ग़रीब को दे सकते हैं ताकि ग़रीब की इज़्ज़ते नफ्स (सेल्फ रिस्पेक्ट) को ठेस न पहुंचे। (कारी मो. अनस)
5. सवाल : सदका-ए-फित्र किस पर वाजिब है? (गुलाम मोहम्मद, इलाहीबाग)
जवाब: हर मालिके निसाब पर अपने और अपनी नाबालिग औलाद की तरफ से सदका-ए-फित्र देना वाजिब है। (मौलाना जहांगीर)
6. सवाल : रोजे की हालत में केमिकल वाली मिसवाक करना कैसा? (अमन, बसंतपुर)
जवाब : अगर केमिकल वाली मिसवाक का मज़ा (टेस्ट) मुंह में महसूस न हो तो जायज है, और अगर इसका मजा महसूस होता हो तो रोज़े की हालत में ऐसी मिसवाक करने से बचना चाहिए। (मौलाना मोहम्मद अहमद)
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