हज प्रशिक्षण में बोले लोग ‘अब तो बस एक ही धुन है कि मदीना देखूं’
रौजा-ए-रसूल पर दरूदो-सलाम पेश करने का बताया गया तरीका
गोरखपुर। जिले के हज यात्रियों को नार्मल स्थित दरगाह हज़रत मुबारक खां शहीद में रविवार को दावते इस्लामी इंडिया की ओर से अंतिम चरण का हज प्रशिक्षण दिया गया। जिसमें मदीना मुनव्वरा की फजीलत, पैग़ंबरे इस्लाम हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के रौजा-ए-मुबारक पर दरूदो-सलाम पेश करने का तरीका व अदब बताया गया। मस्जिदे नबवी की अहमियत पर रोशनी डाली गई। हज़रत सैयदना अबू बक्र व हज़रत सैयदना उमर और जन्नतुल बकी कब्रिस्तान में दफ़न मुकद्दस हस्तियों की आख़िरी आरामगाह की जियारत व सलाम पेश करने का तरीका भी बताया गया। लब्बैक अल्लाहुम्मा लब्बैक का अभ्यास जारी रहा। एहराम पहनने का तरीका एक बार फिर से बताया गया। लोगों के मसाइल व सवालों का जवाब दिया गया। पिछले प्रशिक्षण में बताई गई बातों को दोहराया गया।
हज प्रशिक्षक हाजी आज़म अत्तारी ने बताया कि मदीना मुनव्वरा की बहुत फजीलत व अज़मत है। मदीना मुनव्वरा में एक नेकी के बदले पचास हजार नेकियां मिलती हैं। पैग़ंबरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के कदम मुबारक यहां पड़े तो यह अज़मतों वाली सरजमीं बन गईं। मदीना शरीफ़ को ताबा व तैबा दोनों नामों से जाना जाता है। दोनों लफ्जों का अर्थ पाकी और उम्दगी है। मदीना मुनव्वरा में मस्जिदे नबवी शरीफ़ के एक दरवाजे का नाम बाबुस्सलाम है। इस मस्जिद में पैग़ंबरे इस्लाम का रौजा-ए-मुबारक व रौजा-ए-हज़रत अबू बक्र व हज़रत उमर है। यहां जन्नत की एक क्यारी है। मदीना मुनव्वरा में कई मुकद्दस मस्जिदें व जन्नतुल बकी कब्रिस्तान है। इसके अलावा यहां बहुत से और भी मुकद्दस मकामात हैं। यहां कई मुकद्दस पहाड़ व खजूर के बाग भी हैं।
विशिष्ट वक्ता फरहान अत्तारी ने कहा कि पैग़ंबरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया है कि हज और उमरा मुहताजी और गुनाहों को ऐसे दूर करते हैं, जैसे भट्ठी लोहे-चांदी और सोने के मैल कुचैल को दूर करती है। कयामत के दिन जब लोग परेशानी के आलम में होंगे तो अल्लाह की अता से हाजी अपने घर वालों में से चालीस लोगों की बख़्शिश करवाएगा। हज करने वाला जैसे ही मक्का शरीफ़ व मदीना शरीफ़ की यात्रा के लिए निकलता है तो उसके हर-हर कदम पर नेकी अता की जाती है। यहां तक कि जो शख़्स दौराने हज या रास्ते में मर जाए तो उसे अल्लाह कयामत के दिन हाजी ही उठाएगा। हाजी जब हज अदा करके घर वापस आता है। तो अल्लाह की खास रहमतों से मालामाल होकर आता है। हाजी बारगाह-ए-इलाही से मुकर्रब बंदा बनकर वापस आता है। हाजी की दुआ अल्लाह की बारगाह में कुबूल होती है, इसलिए हाजी से मुलाकात कर उससे दुआ करवानी चाहिए।
प्रशिक्षण की शुरुआत कुरआन-ए-पाक की तिलावत से सैयद इब्राहीम अत्तारी ने की। नात आदिल अत्तारी ने पेश की। अंत में दरूदो-सलाम पढ़कर मुल्क में अमन शांति की दुआ मांगी गई। हज पर लिखी गई अहम किताब ‘रफीकुल हरमैन’ मुफ्त बांटी गई। प्रशिक्षण में अहमद अत्तारी, अब्दुल कलाम अत्तारी, शम्स आलम अत्तारी, रमज़ान अत्तारी, महताब अत्तारी, वसीउल्लाह अत्तारी सहित तमाम हज यात्री मौजूद रहे।
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