भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के टूटने के बाद बिहार में नई सरकार के गठन के अभी छह महीने भी नहीं बीते हैं। लेकिन, सरकार में बड़ी हिस्सेदारी वाली दोनो पार्टियों के बीच उम्मीदवारी के मुद्दे पर ठनती दिख रही है। दोनों दलों के नेताओं के बयान लगातार सामने आ रहे हैं। एक तरफ आरजेडी नीतीश कुमार से कुर्बानी देने की बात कह रही है। वहीं, जेडीयू ने आरजेडी के युवराज तेजस्वी यादव से 2025 का वादा कर फिलहाल इस मामले को टालने की कोशिश की है।
बिहार के ताजा राजनीतिक हालातों के बीच नीतीश कुमार तो मुखर हैं, लेकिन तेजस्वी यादव ने खामोशी साध रखी है। हालांकि, आरजेडी के तमाम बड़े नेता उनके पक्ष में लगातार बल्लेबाजी करते दिख रहे हैं। आरजेडी प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह ने अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस को दिए एक इंटरव्यू में नीतीश कुमार को वीपी सिंह की राह पर चलने की नसीहत दी थी। उन्होंने कहा था कि उन्हें बड़ा पद (प्रधानमंत्री) पाने के लिए छोटा पद (मुख्यमंत्री) पद त्याग देना चाहिए। आरजेडी के तमाम नेताओं की भी यही राय समय-समय पर सामने निकलकर आती रहती है।
2025 के वादे पर आरजेडी को नहीं है भरोसा?
आरजेडी नेताओं के तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनाने की तेज होती मांग का पार्टी आलाकमान के द्वारा खंडन भी नहीं किया गया है। तेजस्वी यादव भी इस मामले पर कभी बयान नहीं देते हैं। इन खामोशियों के बीच यह सवाल उठना लाजमी है कि क्या आरजेडी को नीतीश कुमार के वादे पर भरोसा नहीं है?
लोकसभा चुनाव पर जेडीयू की नजर
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने हाल ही में महागठबंधन के विधायकों और विधान परिषद सदस्यों की एक बैठक को संबोधित करते हुए एक बड़ा ऐलान किया था। उन्होंने 2025 के विधानसभा चुनाव में तेजस्वी यादव को महागठबंधन का नेतृत्व सौंपने की घोषणा की थी। हालांकि, इससे पहले 2024 में लोकसभा का बड़ा चुनाव होने वाला है। बिहार में फिलहाल सात दलों की सरकार चल रही है। ऐसे में जेडीयू की नजरें सीट शेयरिंग पर टिकी हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी से बराबर की हिस्सेदारी लेने वाले नीतीश कुमार के लिए महागठबंधन में मोलभाव करना आसान नहीं दिख रहा है। फिलहाल जेडीयू के 16 लोकसभा सांसद हैं।
बिहार की राजनीति और खासकर नीतीश कुमार को जानने वाले लोग जेडीयू के द्वारा लोकसभा चुनाव से पहले की गई घोषणा के पीछे छिपे राज को ढूंढने की कोशिश कर रहे हैं। बिहार के सियासी गलियारों में लोग इसे 2024 के लोकसभा चुनाव को लेकर होने वाली सीट शेयरिंग से पहले आरजेडी के तेवर को कम करने की कोशिश के तौर पर देख रहे हैं।
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