जुमा की तकरीर में क़ुर्बानी की विशेषता बताई गई, सफाई पर जोर
तकबीरे तशरीक पढ़ना वाजिब, रविवार से पढ़ी जाएगी : मुफ्ती अख्तर
अरफा के दिन रोज़ा रखने की बहुत फज़ीलत है : हाफिज रहमत
गोरखपुर। ईद-उल-अजहा पर्व के मद्देनजर जुमा की तकरीर में कुर्बानी के फजाइल व मसाइल बयान किए गए। पर्व के मौके पर साफ सफाई का ख्याल रखने, भाईचारगी बढ़ाने व अमनो अमान कायम रखने की अपील की गई। मरकजी मदीना जामा मस्जिद रेती में मुफ्ती मेराज अहमद कादरी ने कहा कि कुर्बानी हमें शिक्षा देती है कि जिस तरह से भी हो सके अल्लाह की राह में खर्च करो। कुर्बानी का जानवर कयामत के दिन अपने सींग और बाल और खुरों के साथ आएगा और फायदा पहुंचाएगा। कुर्बानी का खून जमीन पर गिरने से पहले अल्लाह के नजदीक मकामे कबूलियत में पहुंच जाता है। लिहाजा कुर्बानी खुशी से करनी चाहिए। एक हदीस में आया है कि पैग़बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया कि कुर्बानी तुम्हारे पिता हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की सुन्नत है। लोगों ने अर्ज किया इसमें क्या सवाब है? फरमाया हर बाल के बदले नेकी है।
बेलाल मस्जिद अलहदादपुर के इमाम कारी शराफत हुसैन कादरी ने कहा कि दीन-ए-इस्लाम में दो खास ईद है ईद-उल-फित्र व ईद-उल-अज़हा। ईद-उल-फित्र व ईद-उल-अज़हा के दिन रोजा रखना हराम है क्योंकि यह दिन मेहमान नवाजी और अल्लाह की तरफ से तोहफा और ईनाम है। यह हजरत इब्राहीम अलैहिस्सलाम व हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम की सुन्नत है। जिसे अल्लाह ने इस उम्मत के लिए बाकी रखा। साफ-सफाई अल्लाह तआला को पसंद हैं इसका हर मुसलमान को खास ख्याल रखना चाहिए। कुर्बानी का फोटो व वीडियो न बनाएं और न ही अपने कुर्बानी के जानवर की नुमाइश करें। खास जानवर को खास दिनों में कुर्बानी की नियत से जिब्ह करने को कुर्बानी कहते हैं। जिनके यहां कुर्बानी न हुई हो उनके घर सबसे पहले गोश्त भेजें। जिन पर कुर्बानी वाजिब है वह कुर्बानी जरूर करवाएं।
वहीं सब्जपोश हाउस मस्जिद जाफरा बाजार में महाना दर्स के दौरान मुफ्ती अख्तर हुसैन मन्नानी ने बताया कि 16 जून रविवार को फज्र की नमाज़ से लेकर हर नमाजे फ़र्ज़ पंजगाना के बाद तकबीरे तशरीक बुलंद आवाज़ से पढ़ी जाएगी। जिसका सिलसिला 20 जून गुरुवार की असर की नमाज़ तक जारी रहेगा। अरफा (9 जिलहिज्जा) के दिन रोज़ा रखने की बहुत फजीलत हदीस शरीफ़ में आई है। अरफा इस बार 16 जून रविवार के दिन है।
हाफिज रहमत अली निजामी बताया कि 9वीं जिलहिज्जा के फज्र से 13वीं के असर तक हर फ़र्ज़ नमाज़ के बाद जो जमात के साथ अदा की गई एक मरतबा तकबीरे तशरीक यानी ‘अल्लाहु अकबर अल्लाहु अकबर ला इलाहा इल्लल्लाह वल्लाहु अकबर अल्लाहु अकबर व लिल्लाहिल हम्द’ बुलंद आवाज़ से पढ़ना वाजिब है और तीन बार अफ़ज़ल है।
मुकीम शाह जामा मस्जिद बुलाकीपुर के इमाम मौलाना फिरोज अहमद निजामी ने कहा कि दीन-ए-इस्लाम चौदह सौ साल से साफ-सफाई की शिक्षा देता चला आ रहा है। साफ-सफाई अल्लाह को पसंद हैं इसका हर मुसलमान को खास ख्याल रखना चाहिए। कुर्बानी खुश दिली से करें। मुसलमानों का हर त्योहार शांति की शिक्षा देता है। लिहाजा इसका ख्याल रखें कि हमारे किसी काम से किसी को भी जर्रा बराबर भी तकलीफ न होने पाए। जिन पर कुर्बानी वाजिब है वह कुर्बानी जरूर कराएं। यह कुर्बानी उनके बख़्शिश का जरिया बनेगी।
ईद-उल-अजहा पर सेवईयों का बाज़ार सज कर तैयार
उर्दू बाज़ार, नखास चौक, घंटाघर, आदि जगहों पर सेवईयों का बाज़ार सज चुका है। जहां मोटी, बारीक, लच्छेदार के साथ कई वैराइटीज की सेवईयां मौजूद हैं, जो गुणवत्ता और अपने नाम के मुताबिक डिमांड में है। बाहर व आसपास के इलाकों से लोग खरीदारी करने शहर आ रहे हैं।
उर्दू बाज़ार स्थित ताज सेवई सेंटर के मोहम्मद कैस व मोहम्मद आरिफ़ ने बताया कि उनके यहां छड़ व सादी सेवई, छत्ते वाली सेवई, किमामी सेवई, बनारसी, भुनी सेवई, लाल लच्छा, सफेद लच्छा, बनारसी लच्छा, सूतफेनी, रूमाली, दूध फेनी आदि बिक रही है। इस समय सबसे ज्यादा मांग में बनारसी किमामी सेवई है, जो हाथों हाथ खरीदी जा रही है। ईद-उल-फित्र व ईद-उल-अजहा में सेवई की खूब बिक्री होती है। वहीं कुर्बानी के लिए तमाम रंग व नस्ल के बकरे बाजार में बिक रहे हैं।
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