जन्माष्टमी का पर्व सदा से दो दिन का होता है। इस बार 6 और 7 सितंबर को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व होगा। छह सितम्बर को बहुत ही शुभ योग भी बन रहा है। गृहस्थों के लिए इस दिन व्रत रखना अत्यंत शुभ है।
भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव को लेकर ब्रजभूमि में उल्लास है। भक्तों के समूह थिरकते हुए लगातार यहां पहुंच रहे हैं। इस बार जन्माष्टमी पर इस बार द्वापर जैसे योग बन रहे हैं। जो योग श्रीकृष्ण जन्म के समय थे ठीक वैसे ही। इसमें महत्वपूर्ण भूमिका बुधवार की है। बुधवार, भाद्रमास की कृष्णपक्ष की अष्टमी और रोहिणी नक्षत्र। इन्हीं मंगलकारी योग में श्रीकृष्ण का जन्मावतार हुआ था।
ये सभी योग इस बार 6 सितंबर को हैं। जन्माष्टमी का पर्व सदा से दो दिन का होता है। इसलिए 6 और 7 सितंबर को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व होगा। छह सितम्बर को बहुत ही शुभ जयंती योग बन रहा है इसलिए गृहस्थ लोगों के लिए इस दिन जन्माष्टमी व्रत रखना बहुत ही शुभ रहने वाला है। जबकि साधु-संन्यासियों के लिए सात सितम्बर के दिन जन्माष्टमी का व्रत रहेगा। जन्माष्टमी पर इस बार व्रज में 25 लाख से अधिक भक्तों के पहुंचने की उम्मीद है। सुरक्षा के लिए 4100 से अधिक सुरक्षाकर्मी तैनात रहेंगे।
ज्योतिषियों के मुताबिक गृहस्थ लोगों के लिए छह सितंबर को व्रत रखना उत्तम है। इस दिन छहों तत्वों भाद्र कृष्ण पक्ष, अर्धरात्रि की, अष्टमी तिथि, रोहिणी नक्षत्र और इस दिन चंद्रमा वृषभ राशि में संचार करने वाले हैं। इसके साथ यह भी मान्यता है कि जब भी साथ ही जन्माष्टमी बुधवार और सोमवार के दिन आती है वह अत्यंत शुभ फलदायी होती है।
जयंती योग में व्रत रखने का महत्व
ज्योतिष के जानकार बताते हैं कि जयंती योग में जन्माष्टमी का व्रत करने काफी महत्व है। इस दिन श्री कृष्ण की अराधना से तीन जन्मों के पापों से मुक्ति मिलती है।
कब बनता है जयंती योग
जब भी अष्टमी तिथि पर रोहिणी नक्षत्र पड़ता है तो उसे जयंती योग कहा जाता है। मान्यता है कि इस योग में जन्माष्टमी का व्रत रखने वालों को वैकुंठ धाम मिलता है। पितरों को प्रोतयोनि से मुक्ति मिलती है।
दो दिन का शुभ मुहूर्त
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी को लेकर इस बार भी तिथि भ्रम है। चूंकि यह पर्व दो दिन होता आया है इसलिए स्मार्त के लिए 6 और वैष्णव के लिए 7 सितंबर को जन्माष्टमी का पर्व मनाने की व्यवस्था दी जा रही है। पंडितों के अनुसार मध्यरात्रि में अष्टमी के संयोग से ही जन्माष्टमी होती है क्यों कि भगवान श्रीकृष्ण का जन्म रात के 12 बजे माना गया है।
जन्माष्टमी पर चंद्रोदय
6 सितंबर को चंद्रोदय रात्रि 10.57 बजे और 7 सितंबर को रात्रि 11.45 बजे होगा। व्रत परायण और चंद्रोदय के समय मध्यरात्रि अष्टमी 6 सितंबर को होगी।
सात को भी मना सकते हैं
6 सितंबर को मध्यरात्रि में भगवान श्रीकृष्ण का प्रकाट्योत्व के बाद ही जन्माष्टमी के व्रत का पारण होता है। यह सबसे बड़ा और लंबा व्रत होता है। इस बार व्रत के पारण समय चंद्रमा अपनी उच्च राशि वृष में रहेंगे। ज्योतिषियों की राय में वैष्णवजन उदयकालीन अष्टमी के मुताबिक 7 को जन्माष्टमी का पर्व कर सकते हैं।
सरकारी कलेंडर और पंचांग में मेल नहीं
यूं जन्माष्टमी दो दिन होती है। लेकिन इस बार सरकारी कलेंडर और पंचांग में मेल नहीं है। जन्माष्टमी की सरकारी छुट्टी 7 सितंबर की है जबकि जन्माष्टमी का व्रत 6 सितंबर को है।
अष्टमी के साथ रोहिणी
इस बार 6 सितंबर बुधवार को दोपहर 3.37 बजे से अष्टमी तिथि का प्रारंभ होगा। अष्टमी तिथि 7 सितंबर को शाम 4.14 बजे तक व्याप्त रहेगी। इसी प्रकार रोहिणी नक्षत्र ( इसी नक्षत्र में भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था) 6 सितंबर की सुबह 9.19 बजे से 7 सितंबर को 10.24 बजे तक रहेगा। बुधवार का सुयोग भी 6 सितंबर को ही मिल रहा है। इसलिए अधिकांश ज्योतिषियों की राय में 6 सितंबर को ही जन्माष्टमी का पर्व करना यथेष्ट है।
ठाकुर जी का अभिषेक और श्रृंगार
6 सितंबर को अष्टमी के शुभारंभ पर अपराह्न 3.37 बजे भगवान मधुसूदन यानी श्रीकृष्ण का श्रृंगार किया जाना चाहिए। यह स्वागत होगा भगवान श्रीकृष्ण का। रात को 12 बजे ज न्मोत्सव के समय लड्डूगोपाल जी का पहले गंगाजल और उसके बाद पंचामृत से स्नान करना चाहिए। फिर श्रृंगार करके आरती करें और व्रत पारण करें।
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